सावन (श्रावण) मास में बाल कटवाना वर्जित क्यों माना जाता है? (Why hair cutting is avoided in the Hindu month of Sawan)
हिंदू धर्म में सावन (श्रावण) मास को भगवान शिव का पवित्र महीना माना जाता है। इस दौरान कई धार्मिक नियमों और व्रतों का पालन किया जाता है। इसी क्रम में सावन के महीने में बाल या नाखून काटना वर्जित माना जाता है। इसके पीछे धार्मिक, आयुर्वेदिक और सांस्कृतिक तीनों प्रकार के कारण माने जाते हैं।
श्रावण मास या सावन का महीना हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। यह महीना विशेष रूप से भगवान शिव की उपासना के लिए समर्पित है। इस दौरान भक्त व्रत, उपवास, रुद्राभिषेक और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। लेकिन इसी महीने से जुड़ी एक मान्यता वर्षों से चली आ रही है – "सावन में बाल या नाखून नहीं कटवाने चाहिए"।
क्या यह सिर्फ परंपरा है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक व सांस्कृतिक तर्क भी हैं? आइए जानें...
1️⃣ धार्मिक दृष्टिकोण से – श्रद्धा, संयम और साधना का प्रतीक
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सावन का महीना शिवभक्ति का महीना माना गया है।
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इस माह में व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह सादगी, वैराग्य, और भक्ति भाव के साथ जीवन व्यतीत करे।
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बाल कटवाना या शेविंग करना एक प्रकार से सज्जा-संवार की प्रक्रिया मानी जाती है, जो संयम के विरुद्ध जाती है।
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यह माना जाता है कि इस माह में शरीर के ऊपर कोई भी कटाव (जैसे बाल काटना, नाखून काटना आदि) अशुभ फल दे सकता है।
🔱 मान्यता:
बाल कटवाना इस माह में पुण्य के क्षय और शारीरिक अशुद्धि का कारण माना गया है। इसीलिए साधक, व्रती और शिवभक्त इस नियम का पालन करते हैं।
2️⃣ आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से – स्वास्थ्य की दृष्टि से व्यावहारिक सोच
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सावन के महीने में वातावरण में उच्च नमी (Humidity) होती है, जिससे संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
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सिर की त्वचा (scalp) और नाखून संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
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बाल या नाखून काटने से सूक्ष्म चोटें लग सकती हैं, जो फंगल या बैक्टीरियल संक्रमण का कारण बनती हैं।
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आयुर्वेद के अनुसार, वर्षा ऋतु में पाचन शक्ति भी कमजोर होती है और शरीर रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होता है।
🌿 निष्कर्ष:
शरीर की अतिरिक्त सुरक्षा के लिए इस महीने में बाल और नाखून न काटने की परंपरा रही है, जो विज्ञानसम्मत भी है।
3️⃣ सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण – संयम और समाजिक परंपरा
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यह महीना ध्यान, आत्मशुद्धि, और मानसिक स्थिरता का समय माना गया है।
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कई जगहों पर इस माह को गृहस्थ जीवन से विरक्ति और आध्यात्मिक साधना से जोड़ कर देखा जाता है।
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बाल कटवाने जैसे भौतिक सौंदर्य से जुड़े कर्म इस दृष्टिकोण से वर्जित समझे जाते हैं।
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विशेषकर ब्रह्मचारी, साधु, योगी और उपवास करने वाले व्यक्ति इन नियमों का पालन करते हैं।
🪔 व्यावहारिक रूप से भी, वर्षा के मौसम में बाहर निकलना, नाई की दुकान जाना, साफ-सफाई आदि मुश्किल होती है, इसलिए यह नियम अधिक व्यवहारिक भी है।
सावन मास में बाल न काटने की परंपरा केवल एक धार्मिक नियम नहीं है, बल्कि इसके पीछे स्वास्थ्य विज्ञान, सामाजिक अनुशासन और आध्यात्मिक सोच छिपी हुई है।
यह परंपरा हमें संयम, भक्ति, और स्वच्छता का संदेश देती है। जब धर्म और विज्ञान दोनों मिलकर किसी परंपरा को मजबूती देते हैं, तब वह केवल ‘रिवाज’ नहीं, बल्कि जीवन जीने की विधि बन जाती है।
यदि आप सावन में बाल न कटवाने की परंपरा का पालन करते हैं, तो इस दौरान स्वस्थ दिनचर्या, शुद्ध आहार, और मानसिक शांति की ओर ध्यान दें। यही सावन का मूल संदेश है।
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